कुछ लोग पीछे छूट जाते हैं
यादें वोह अपनी छोड़ जाते हैं
उन्ही यादों के बारे में सोचो
तो कुछ पुराने किस्से याद आ जाते हैं
उन पुराने किस्सों की थी अपनी कहानी
जो हमने लिखी थी अपनी ज़ुबानी
उन दिनों की बात कुछ और थी
जब ज़िन्दगी न सिर्फ एक दौड़ थी|
अपने से लोग, अपने से चेहरे
वोह सीधे से सुलझे से सपने
जब किसी मुखोटे पर न शक था
जब एक हसीं और आंसूं के बीच
सिर्फ एक मिनट का फरक था |
माना यह सब पुरानी बातें हैं
मगर कभी कभी ये याद आ जाती हैं
जब तुम अपने बारे में सोचते हो
जब तुम उन लोगों के बारे में सोचते हो
जो कभी तुम्हारे साथ हर पल थे
लेकिन आज कोई इधर कोई उधर है
उन चेहरों की कहानी है तो पुरानी
मगर लगती है अकेले पल में सुहानी|
वोह अपने से लोग, अपने से चेहरे
जो अब हो गए हैं थोड़े धुंधले |
मगर पुराने लम्हों के बीच,
उनके साथ धुंधले चेहरों के बीच,
मायूसी और मीठी यादों के बीच,
पता भी ना चला और नए रिश्ते बनते गए
शायद यही दस्तूर है, और ज़िन्दगी इसी का नाम है
इनमे से कुछ रिश्ते कल जीर्ण हो जायेंगे
कुछ खट्टी कुछ मीठी, माला में यादों की कुछ और मोती पिरोये जायेंगे
इन्हीं पुराने और नयी बनती यादों की थपेड़ में
आज के भागते ज़िन्दगी की दौड़ में
जब सोचने या तसल्ली से महसूस करने का वक़्त नहीं होता, फिर भी
हर नए रिश्तों के साथ एक आँस होती है
कभी सवाल और कभी खिलवाड़ी मन की जाँच होती है ,
और परखते-परखते, हम यह खुद से पुच बैठते हैं
के कबतक इस रिश्ते का साथ रहेगा,
क्या सिर्फ चार दिन की चांदनी रहेगी, या बसंत पूरे साल रहेगा
पर जो भी हो, एक अनकही तलाश और बेखबर इंतज़ार ज़ारी रहता है
जब तलक इस बात का यकीन ना हो जाये के इस बार की बसंत हमेशा के लिए आयी है.
(The last 2 verses have been added to This Poem, by Alok Raj Gupta :))
यादें वोह अपनी छोड़ जाते हैं
उन्ही यादों के बारे में सोचो
तो कुछ पुराने किस्से याद आ जाते हैं
उन पुराने किस्सों की थी अपनी कहानी
जो हमने लिखी थी अपनी ज़ुबानी
उन दिनों की बात कुछ और थी
जब ज़िन्दगी न सिर्फ एक दौड़ थी|
अपने से लोग, अपने से चेहरे
वोह सीधे से सुलझे से सपने
जब किसी मुखोटे पर न शक था
जब एक हसीं और आंसूं के बीच
सिर्फ एक मिनट का फरक था |
माना यह सब पुरानी बातें हैं
मगर कभी कभी ये याद आ जाती हैं
जब तुम अपने बारे में सोचते हो
जब तुम उन लोगों के बारे में सोचते हो
जो कभी तुम्हारे साथ हर पल थे
लेकिन आज कोई इधर कोई उधर है
उन चेहरों की कहानी है तो पुरानी
मगर लगती है अकेले पल में सुहानी|
वोह अपने से लोग, अपने से चेहरे
जो अब हो गए हैं थोड़े धुंधले |
मगर पुराने लम्हों के बीच,
उनके साथ धुंधले चेहरों के बीच,
मायूसी और मीठी यादों के बीच,
पता भी ना चला और नए रिश्ते बनते गए
शायद यही दस्तूर है, और ज़िन्दगी इसी का नाम है
इनमे से कुछ रिश्ते कल जीर्ण हो जायेंगे
कुछ खट्टी कुछ मीठी, माला में यादों की कुछ और मोती पिरोये जायेंगे
इन्हीं पुराने और नयी बनती यादों की थपेड़ में
आज के भागते ज़िन्दगी की दौड़ में
जब सोचने या तसल्ली से महसूस करने का वक़्त नहीं होता, फिर भी
हर नए रिश्तों के साथ एक आँस होती है
कभी सवाल और कभी खिलवाड़ी मन की जाँच होती है ,
और परखते-परखते, हम यह खुद से पुच बैठते हैं
के कबतक इस रिश्ते का साथ रहेगा,
क्या सिर्फ चार दिन की चांदनी रहेगी, या बसंत पूरे साल रहेगा
पर जो भी हो, एक अनकही तलाश और बेखबर इंतज़ार ज़ारी रहता है
जब तलक इस बात का यकीन ना हो जाये के इस बार की बसंत हमेशा के लिए आयी है.
(The last 2 verses have been added to This Poem, by Alok Raj Gupta :))
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