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Tuesday, May 24, 2011


क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक में...

आज शब् जो चाँद ने है रूठने की ठान ली
गर्दिशों में है सितारे बात हमने मान ली
अँधेरी श्याह ज़िन्दगी को सूझी थी नहीं गली
की आज हाथ थाम लो की एक हाथ की कमी खली
क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक में तलाश में उदास है दिल
क्यूँ अपने आप से खफा खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
यह मंजिलें भी खुद ही तै करे
यह फासले भी खुद ही तै करे
क्यूँ रास्तों पे फिर सहम सहम संभल संभल कर चलता है दिल
क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक में तलाश में उदास है दिल
ज़िन्दगी सवालों के जवाब ढूँढने चली
जवाब में सवालों की एक लम्बी सी लड़ी मिली
सवाल ही सवाल हैं सूझती नहीं गली
की आज हाथ थाम लो एक हाथ की कमी खली
जी में आता है
मुर्दा सितारे नोच लूं
इधर भी नोंच लूं
उधर भी नोंच लूं
एक दो का ज़िकर क्या
मैं सारे नोंच लूं
इधर भी नोंच लूं
उधर भी नोंच लूं
सितारे नोंच लूं
मैं सारे नोंच लूं
क्यूँ तू आज इतना वैशी है मिजाज़ में मजाज़ में है गम ऐए दिल
क्यूँ अपने आप से खफा खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये मंजिलें भी खुद ही तै करे
ये फासले भी खुद ही तै करे
क्यूँ रास्तों पे फिर सहम सहम संभल संभल के चलता है ये दिल
दिल को समझाना कह दो क्या आसान है
दिल तो फितरत से सुन लो ना बेईमान है
यह खुश नहीं है जो मिला
बस मांगता ही है चला
जानता है हर लगी का
दर्द ही है बस एक सिला
जब कभी यह दिल लगा
दर्द ही हमें मिला
दिल की हर लगी का सुनलो
दर्द ही है एक सिला
क्यूँ नए नए से दर्द की फ़िराक में तलाश में उदास है दिल
क्यूँ अपने आप से खफा खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये मंजिलें भी खुद ही तै करे
ये फासले भी खुद ही तै करे
क्यूँ रास्तों पे फिर सहम सहम संभल संभल के चलता है ये दिल
क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक में तलाश में उदास है दिल
क्यूँ अपने आप से खफा खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये मंजिलें भी खुद ही तै करे
ये फासले भी खुद ही तै करे
क्यूँ रास्तों पे फिर सहम सहम संभल संभल कर चलता है ये दिल

1 comment:

Miss. Mystic said...

I love this poem and the way it is sung is awesome! :)